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जाति नहीं, मानवता हो पहचान
डॉ. भीमराव अंबेडकर — एक ऐसा नाम जो भारत के इतिहास में न्याय, समानता और मानव गरिमा के प्रतीक के रूप में अंकित है। उनका सपना था एक ऐसा भारत जहाँ:
बाबा साहब का सबसे बड़ा सपना था — जातिविहीन समाज। वह चाहते थे कि कोई व्यक्ति उसकी जाति या जन्म के आधार पर न आँका जाए, बल्कि उसके ज्ञान, कर्म और नैतिकता से उसकी पहचान बने।
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शिक्षा सबके लिए हो समान
“मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की शिक्षा देता है।” — डॉ. अंबेडकर
बाबा साहब ने शिक्षा को समाज की असल क्रांति माना। उनका मानना था कि जब तक शिक्षा सबके लिए सुलभ नहीं होगी, तब तक सच्चा लोकतंत्र संभव नहीं।
उन्होंने कहा था — “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।”
उनका सपना था कि हर बच्चा — चाहे वह किसी भी वर्ग या वर्गीकरण से क्यों न हो — किताबों तक बराबरी से पहुँच सके।
आर्थिक समानता और आत्मनिर्भरता
बाबा साहब ने पूँजीवादी शोषण का विरोध किया। वे चाहते थे कि श्रमिकों को उनका पूरा अधिकार मिले और समाज के पिछड़े वर्गों को आर्थिक रूप से सशक्त किया जाए। उनका सपना था कि हर हाथ को काम मिले और हर पेट को भरपेट भोजन।
महिलाओं को पूरा अधिकार
बाबा साहब भारत के पहले ऐसे नेताओं में से थे, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों को खुलकर समर्थन दिया। उन्होंने संविधान में महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की पहल की।
उनका सपना था एक ऐसा भारत जहाँ “स्त्री न सिर्फ घर की रानी, बल्कि समाज निर्माण की भागीदार हो।”
संविधान — हर भारतीय की आत्मा
डॉ. अंबेडकर ने भारत को एक ऐसा संविधान दिया जो समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के मूल स्तंभों पर टिका है। उनका सपना था कि यह संविधान केवल कागज़ी न रहे, बल्कि समाज के हर हिस्से में उसका प्रभाव दिखाई दे।
बाबा साहब के सपनों का भारत कैसा हो?
जहाँ कोई भूखा न सोए
जहाँ हर बच्चा पढ़ सके
जहाँ औरतें निडर हों
जहाँ मजदूर का पसीना बेकार न जाए
जहाँ संविधान हर व्यक्ति की ढाल बने
जहाँ धर्म मानवता के खिलाफ न जाए
और जहाँ राजनीति सेवा का माध्यम बने, न कि शोषण का
संपादक की कलम से…..✍️