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बस स्टैंड बना प्रसव कक्ष, अस्पताल और आशा कार्यकर्ता की लापरवाही ने खोली सरकारी सिस्टम की पोल
छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) | रिपोर्ट: द इंडिया स्पीक्स
बारिश से भीगी दोपहर, कीचड़ और बदबू से सना परासिया बस स्टैंड… और वहीं एक नाबालिग लड़की ज़मीन पर तड़पती है। दर्द में कराहती यह 15 साल की बच्ची कुछ मिनटों में एक बच्ची को जन्म देती है। न डॉक्टर, न दाई… और न ही कोई मानवता की मिसाल। यह कोई काल्पनिक दृश्य नहीं, बल्कि छिंदवाड़ा जिले में मंगलवार को हुई एक दिल दहला देने वाली सच्ची घटना है।
अस्पताल में जांच के लिए लाई गई नाबालिग को उसकी आशा कार्यकर्ता ने तब अकेला छोड़ दिया, जब उसके अपने बच्चे की तबीयत बिगड़ गई। उसने लड़की को बस स्टैंड पर छोड़ दिया और चली गई। कोई सुरक्षा नहीं, कोई महिला सहयोगी नहीं, कोई प्राथमिक देखभाल नहीं।
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3:45 बजे आई बच्ची, 5 बजे पहुंची डॉक्टर
बताया जा रहा है कि प्रसव पीड़ा के बाद बच्ची और नवजात को 3:45 बजे अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन महिला चिकित्सक 5 बजे पहुंचीं। तब तक केवल प्राथमिक उपचार ही दिया गया।
बीएमओ डॉ अंकित सहलाम ने बताया कि बच्ची का जन्म समय से पहले हुआ है और वह बेहद कमजोर है। दोनों को जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है। नवजात को विशेष निगरानी में रखा गया है, जबकि मां की स्थिति अभी स्थिर है।
सवाल जो सिस्टम से पूछे जाने चाहिए
अस्पताल में तैनात महिला स्वास्थ्यकर्मी कहां थीं?
क्या किसी नाबालिग को यूं अकेला छोड़ना मानवता के खिलाफ नहीं?
प्रसव जैसी आपात स्थिति में यह लापरवाही क्यों?
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