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नाम नहीं, इंसानियत चाहिए थी उन्हें” — सुबह 4 बजे अंतिम सांस ली, उम्र थी 84 वर्ष
जबलपुर| द इंडिया स्पीक्स| पीयूष भालसे
पद्मश्री डॉ. एमसी डाबर, जिन्हें गरीबों का मसीहा कहा जाता था, अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार सुबह करीब 4 बजे उन्होंने अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उम्र 84 वर्ष थी, लेकिन उनका जज़्बा और सेवा भावना आज भी देशवासियों के लिए मिसाल है।
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2 रुपये से शुरू हुई थी सेवा — 50 वर्षों तक बनी रही इंसानियत की कीमत
1972 में जब डॉ. डाबर ने चिकित्सा सेवा शुरू की, तब उनकी फीस सिर्फ 2 रुपये थी। समय के साथ महंगाई बढ़ी, लेकिन उन्होंने अपनी फीस सिर्फ 20 रुपये तक सीमित रखी — जब देश के बाकी डॉक्टरों की फीस सैकड़ों से लेकर हजारों तक पहुंच चुकी थी।
उनका छोटा सा क्लिनिक आम आदमी के लिए किसी बड़े अस्पताल से कम नहीं था। लोगों के लिए वह सिर्फ डॉक्टर नहीं, जीवनदाता थे।
न शोहरत चाहिए थी, न दौलत — सिर्फ सेवा में विश्वास
डॉ. डाबर का मानना था कि “हर बीमार इंसान में भगवान बसते हैं।” उन्होंने कभी पैसे, प्रचार या राजनीति की तरफ रुख नहीं किया। उनका जीवन एक ही लक्ष्य के इर्द-गिर्द घूमता रहा — “सबको सुलभ इलाज मिले, बिना किसी भेदभाव के।”
डॉ. डाबर को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा गया था, लेकिन उन्होंने कभी उसका प्रदर्शन नहीं किया। उनके क्लिनिक की दीवारों पर कोई तामझाम नहीं — बस दवाओं की अलमारियाँ और इंतज़ार करते मरीज होते थे।
समाज ने खोया एक सच्चा सेवक
उनके जाने से केवल जबलपुर ही नहीं, पूरा देश शोक में डूब गया है। वे उन बिरले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने चिकित्सा को पेशा नहीं, पूजा समझा। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए सेवा, सादगी और समर्पण की एक अमिट मिसाल बनकर रहेगा।
“देश ने एक पद्मश्री खोया, लेकिन इंसानियत ने एक फरिश्ता खो दिया।”
The India Speaks की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि