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31 दिसंबर 1999 को बोरिस येल्त्सिन ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया?” — यह सवाल इतिहास की सबसे रहस्यमयी राजनीतिक घटनाओं में एक बन चुका है।

द इंडिया स्पीक्स डेस्क | विशेष लेख

सत्ता परिवर्तन या पहले से तय उत्तराधिकारी?

1999 के अंत में जब रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन ने एक टेलीविजन संदेश के माध्यम से राष्ट्र को चौंकाते हुए इस्तीफा दिया और व्लादिमीर पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया, तब तक शायद ही किसी को अंदाजा था कि यह व्यक्ति आने वाले दो दशकों तक रूस की सत्ता का चेहरा बन जाएगा।

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पर क्या यह सिर्फ एक ‘स्थानांतरण’ था, या फिर सत्ता का सुनियोजित हस्तांतरण?

पुतिन कौन थे, और क्यों उन्हें चुना गया?

पुतिन, जो उस वक्त रूस के प्रधानमंत्री थे, उससे पहले KGB (सोवियत खुफिया एजेंसी) में एक गुप्त अधिकारी रह चुके थे। वे कोई करिश्माई नेता नहीं थे, न ही जनता में उनकी कोई लोकप्रिय पहचान थी। लेकिन वे येल्त्सिन और उनके “परिवार” (राष्ट्रपति के करीबियों और सलाहकारों का समूह) के लिए सबसे विश्वसनीय चेहरा बनकर उभरे।

कई विश्लेषक मानते हैं कि येल्त्सिन के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी बिगड़ती छवि के बीच उन्हें किसी ऐसे उत्तराधिकारी की तलाश थी जो:

सत्ता में आने के बाद उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षा दे सके,

अतीत की फाइलें न खोले,

और सत्ता को चुनौती नहीं दे।

क्या पुतिन को यह गारंटी देने की शर्त पर राष्ट्रपति पद सौंपा गया?

येल्त्सिन के इस्तीफे के पीछे दबाव?

येल्त्सिन का इस्तीफा ‘स्वैच्छिक’ था या ‘राजनीतिक सौदेबाज़ी’?

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, पुतिन ने प्रधानमंत्री बनने के बाद आंतरिक प्रशासनिक तंत्र को तेजी से अपने पक्ष में मोड़ना शुरू कर दिया था। भ्रष्टाचार के तमाम दस्तावेज उनके सामने थे। यह भी संभावना जताई जाती है कि उन्होंने सीधे तौर पर येल्त्सिन से यह संदेश दिया हो:
या तो मुझे उत्तराधिकारी बनाओ, या फिर अतीत की फाइलें खुलेंगी।

सत्ता का केंद्रीकरण और पुतिन की शैली

राष्ट्रपति बनने के बाद पुतिन ने:

मीडिया पर नियंत्रण बढ़ाया,

क्षेत्रीय गवर्नरों को केंद्र के अधीन किया,

और ख़ुफ़िया एजेंसियों की शक्ति को कई गुना बढ़ाया।

इन सबके बीच उन्होंने येल्त्सिन और उनके परिवार को कानूनी संरक्षण दिया — यानी एक ‘साफ-सुथरे’ सौदे की पूरी तस्वीर सामने आती है।

शक्तियों का केंद्रीकरण (2000-2004): राष्ट्रपति बनते ही लोकतंत्र पर लगाम

पुतिन ने सबसे पहले रूस के प्रादेशिक गवर्नरों की स्वायत्तता को समाप्त किया और उन्हें केंद्र सरकार के अधीन कर दिया।

राज्य ड्यूमा (संसद) और न्यायपालिका पर नियंत्रण बढ़ाया।

संविधान के भीतर रहकर ‘सत्ता की केंद्रीकरण’ की नीति अपनाई, जिससे विपक्ष का असर लगातार घटता गया।

🔍 यह पहला कदम था “लोकतंत्र के मुखौटे” के पीछे सत्ता को पूरी तरह पकड़ने का।

मीडिया पर नियंत्रण और “सत्ता की कहानी” तय करना

NTV, ORT, जैसे स्वतंत्र चैनलों को या तो बंद किया गया या सरकार के कब्जे में ले लिया गया।

बड़े मीडिया हाउस Kremlin के समर्थक उद्योगपतियों को सौंपे गए।

“राष्ट्र की सुरक्षा”, “रूसी गौरव” जैसे नैरेटिव को बनाया और फैलाया।

📺 पुतिन ने समझ लिया था कि जो सूचना पर राज करता है, वही सत्ता में रहता है।

युकोस कंपनी और मिखाइल खोदोरकोव्स्की का मामला (2003)

रूस के सबसे अमीर उद्योगपति मिखाइल खोदोरकोव्स्की, जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी रखने लगे थे, को जेल भेजा गया।

उनकी Yukos कंपनी को तोड़कर सरकारी कंपनियों को दे दिया गया।

💼 संदेश स्पष्ट था — जो सत्ता को चुनौती देगा, वह बचेगा नहीं।

चेचन्या में सख्त सैन्य कार्रवाई: “आतंकवाद” के नाम पर लोकप्रियता

पुतिन ने चेचन्या के विद्रोहियों पर निर्दयी सैन्य हमला किया।

इसे ‘रूसी संप्रभुता की रक्षा’ के रूप में प्रस्तुत किया गया।

💣 रूसी जनता को एक “मजबूत नेता” की छवि दी गई जिसने देश की एकता बचाई।

2008 में राष्ट्रपति पद छोड़कर प्रधानमंत्री बनना – लेकिन सत्ता अपने पास रखना

2008 में जब संविधान के मुताबिक पुतिन तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे, तो उन्होंने दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनवाया, और खुद प्रधानमंत्री बन गए।

लेकिन सब जानते थे कि असली शक्ति पुतिन के हाथ में ही है।

🔁 यह ‘कानूनी सत्ता अदला-बदली’ की मास्टर स्ट्रोक थी।

2012 में फिर राष्ट्रपति, और कार्यकाल 6 साल का कराना

पुतिन दोबारा राष्ट्रपति बने और संविधान में संशोधन कराकर कार्यकाल को 4 से 6 वर्ष का करवा लिया।

यानी अब वे 2012 से 2018, फिर 2018 से 2024 तक सत्ता में रह सकते थे।

📜 सत्ता को “संविधान की भाषा” में स्थायी किया।

2020 संविधान संशोधन: 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ

2020 में जनमत संग्रह कराया गया, जिसमें संविधान में बदलाव कर पिछले कार्यकालों को ‘रीसेट’ कर दिया गया।

इसका मतलब: अब पुतिन 2036 तक राष्ट्रपति बन सकते हैं।

🗳️ यह लोकतंत्र का तकनीकी अपहरण था — जनता से वोट लेकर हमेशा के लिए सत्ता पर रहना।

यूक्रेन पर हमला (2022): राष्ट्रवाद और संकट के बहाने सत्ता को स्थायी बनाना

पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर इसे “रूसी विरासत की रक्षा” का युद्ध बताया।

युद्धकालीन राष्ट्रवाद, पश्चिमी प्रतिबंधों और आंतरिक दमन के जरिए सभी असहमतियों को कुचल दिया।

⚔️ युद्ध एक आंतरिक साधन बन गया — “संकट पैदा करो, और उसके बहाने शासन करो।”

क्या यह “दीप स्टेट” की जीत थी?

रूस की सत्ता संरचना में KGB (बाद में FSB) की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। पुतिन इसी गहरे राज्य (Deep State) से निकले हुए खिलाड़ी थे। सवाल यह है — क्या उन्होंने सत्ता को अपनी शर्तों पर जीता, या सत्ता पहले से उनके लिए बिछी हुई थी?

निष्कर्ष:

पुतिन की सत्ता किसी एक चुनाव या तख्तापलट की देन नहीं है, बल्कि रणनीतिक फैसलों की श्रृंखला है
जिसमें उन्होंने:

संविधान को बदला,

संस्थाओं को दबाया,

युद्धों का इस्तेमाल किया,

और सबसे अहम — “रूसी गौरव” की भावना को हथियार बनाया।

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