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प्रदेश में किसानों को रूला रही खाद, डिमांड और सप्लाई में जमीन आसमान का अंतर
भोपाल (रितेश दुबे) –
यह पहला साल नहीं हैं जब मध्य प्रदेश में खाद की किल्लत हो रही है. रबी सीजन हो या खरीफ सीजन हर बार, हर साल किसान खाद के लिए मारामारी करता है, लंबी लाइन लगाता है, डंडे खाता है, कई दिन इंतजार करता है और नतीजा ये रहता है कि किसान को यदि खाद मिल भी जाती है तो उसे जितनी चाहिए उतनी नहीं. मजबूरन किसान दोगुने दामों में बाजार से खाद खरीदता है. इधर खाद व्यापारी भी कालाबाजारी करने से नहीं चूकते. इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि देश के लिए अन्न उगाने वाले अन्नदाता को समय पर पर्याप्त खाद नहीं मिल पाती.
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मध्य प्रदेश में खाद की मारामारी
मध्य प्रदेश के कई जिलों में इन दिनों खाद की मारामारी है. किसान खाद की किल्लत से जूझ रहे हैं. हरदा ऐसा इकलौता जिला नहीं है जहां किसानों को खाद के लिए लंबी कतारों के साथ कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा हो. बड़वानी, खंडवा, शिवपुरी, अशोकनगर, बुरहानपुर, खरगोन, नर्मदापुरम, विदिशा जैसे कई जिलों की लंबी फेहरिस्त है जहां खाद के लिए अन्नदाता को जूझना पड़ रहा है. कई जिलों में खाद वितरण के दौरान एसडीएम और अपर कलेक्टर को पहुंचकर मोर्चा संभालना पड़ रहा है. हालत ये हैं कि कई जगह किसान बारिश में भीगते हुए सुबह 4 बजे से सरकारी वितरण केंद्रों में लाइन में लग रहे हैं,लेकिन टोकन मिलने के बावजूद खाद नहीं मिल पा रही है.
डिमांड और सप्लाई में अंतर
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में खरीफ 2025 के लिए 36 लाख मीट्रिक टन से अधिक खाद वितरण का लक्ष्य रखा गया है. इसमें यूरिया की खपत 17.40 लाख मीट्रिक टन बताई जा रही है. एसएसपी के लिए 6.50 लाख मीट्रिक टन, डीएपी के लिए 7.50 लाख मीट्रिक टन,एमओपी के लिए 5 हजार मीट्रिक टन और एनपीके के लिए 86 हजार मीट्रिक टन की डिमांड है.

यदि प्रदेश में खाद सप्लाई यानि वितरण की बात की जाए तो यह व्यवस्था सहकारी समितियों और सरकारी केंद्रों के माध्यम से की जाती है. किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार खाद उपलब्ध कराने के लिए सरकार विभिन्न उपाय कर रही है जैसे खाद वितरण केंद्रों की संख्या बढ़ाना, कालाबाजारी रोकनाऔर टोकन सिस्टम लागू किया गया है. प्रदेश में सहकारी समितियों और सरकारी केंद्रों के माध्यम से खाद वितरण किया जाता है. ये समितियाँ किसानों को खाद,बीज और अन्य कृषि चीजें उपलब्ध करवाती हैं. सरकार हर जिले में वहां किसानों की संख्या के आधार पर खाद का रैक उपलब्ध कराती है लेकिन हर साल किसानों को उनकी जरुरत के अनुसार खाद नहीं मिल पाती.
खाद की मारामारी में एक नहीं कई जिले
प्रदेश में खाद की मारामारी वाले जिलों की लंबी फेहरिस्त है. अधिकांश जिले ऐसे हैं जहां खाद के लिए किसान रात से ही कतारों में लग जाते हैं. हाल ही में बड़वानी में खाद के लिए किसानों ने जमकर हंगामा किया था. खंडवा जिले के किसान भी खरीफ फसलों की बुवाई के बाद सारे काम छोड़ कर खाद के लिए भटक रहे हैं. शिवपुरी में भी किसानों ने खाद के लिए हंगामा किया था. इसके अलावा बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, विदिशा, नर्मदापुरम जैसे कई जिले हैं जहां खाद के लिए किसानों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है. 10 जुलाई को अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ तहसील में खाद को लेकर किसानों का गुस्सा फूट पड़ा था. किसानों ने करौंदी तिराहे पर चक्का जामकर विरोध प्रदर्शन किया था. किसानों का आरोप था कि 15 दिनों से हर दिन खाली हाथ लौट रहे हैं. किसानों के समर्थन में कांग्रेस विधायक फुंदेलाल सिंह भी धरने पर बैठे थे.

खाद नहीं मिलने से बुवाई पर असर
समय पर खाद नहीं मिलने से सबसे ज्यादा असर बुवाई पर पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि समय से खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही है. हरदा की किसान रुक्मणि बाई ने बताया कि “कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं अब बोला जा रहा है कि सोमवार यानि 21 जुलाई को खाद मिलेगी. सीजन की सबसे ज्यादा बुवाई जून और जुलाई में ही होती है और समय पर खाद नहीं डाली गई तो फसलें खराब हो जाएंगी. नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है.”
खरीफ सीजन की बुवाई लगभग पूरी
मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में खरीफ सीजन की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है और अब किसानों को खाद की जरूरत है. किसानों को डीएपी और यूरिया खाद की इस समय सबसे ज्यादा जरुरत है. सहकारी समितियों की बात की जाए तो यहां कई बार खाद का स्टॉक होने के बावजूद तकनीकी समस्या के चलते खाद नहीं बंट पाता. वहीं कई समितियों और गोदामों के आगे लंबी-लंबी कतारें लगी हैं. आलम ये है कि किसानों को जरुरत के मुताबिक खाद नहीं मिल पा रहा है.
वैकल्पिक खाद का पर्याप्त स्टॉक
कृषि विभाग की बात मानें तो बाजार और समितियों में वैकल्पिक खाद का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है. किसानों में खाद के विकल्प को लेकर जागरूकता की कमी देखी जाती है. खासकर सिंगल सुपर फास्फेट जैसी खाद को किसान नजरअंदाज कर रहे हैं. यह डीएपी का असरदार विकल्प साबित हो सकता है. इसी के साथ नैनो यूरिया लेने से भी परहेज कर रहे हैं.

खाद की कालाबाजारी रोकने के प्रयास
खाद की कालाबाजारी रोकने के लिए भी सरकार सख्त कदम उठा रही है. इस संबंध में अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए गए हैं. कई जिलों में किसानों को खाद के लिए टोकन जारी किए जाते हैं. जिससे किसानों को व्यवस्थित रूप से खाद मिले. कलेक्टरों को खाद वितरण की लगातार मानिटरिंग करने और यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं कि किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार खाद मिल सके. सहकारी समितियों में तकनीकी समस्याओं के कारण खाद वितरण में होने वाली देरी के कारण भी कई परेशानियां हैं.
यूरिया और डीएपी का विकल्प
कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो एसएसपी एक फॉस्फेट युक्त उर्वरक है. इसमें 16% फास्फोरस, 11% सल्फर और कुछ मात्रा में कैल्शियम होता है. एसएसपी का असर धीमे-धीमे होता है लेकिन उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है. एसएसपी के उपयोग से मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ बनी रहती है जबकि डीएपी का अधिक इस्तेमाल मिट्टी को सख्त कर देता है. यह फसलों की जड़ों को मजबूती देता है और उनकी पैदावार में सहायता करता है. यूरिया और डीएपी का यह एक अच्छा विकल्प है.
खाद संकट को लेकर कांग्रेस ने साधा निशाना
खाद संकट को लेकर कांग्रेस ने प्रदेश सरकार पर निशाना साधा है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने छिंदवाड़ा खाद वितरण केंद्र की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा कि “लगता है कि भाजपा सरकार ने किसानों को परेशान करना ही अपना कर्तव्य समझ लिया है.” नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी खाद का मुद्दा उठाया है. उन्होंने कहा कि “प्रदेश का किसान परेशान है और सरकार विदेश में इन्वेस्टमेंट ढूंढ रही है. सागर में खाद वितरण केंद्र पर किसानों की लंबी कतारों का वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार को न खेती की चिंता है और न किसानों की.डीएपी के बाद अब यूरिया भी लापता है.”