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“आखिर ऐसा क्यों?” — शिक्षिका परमा सोलंकी ने उठाया सरकार के सिस्टम पर सवाल
खरगोन/बड़वाह /द इंडिया स्पीक्स डेस्क
सरकार की स्थानांतरण (ट्रांसफर) नीति पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। खरगोन जिले के बड़वाह में पदस्थ एक सरकारी कर्मचारी की पत्नी, जो खुद एक शिक्षिका हैं, को अपनी एक वर्षीय बालिका और पति से 550 किलोमीटर दूर सागर जिले के बंडा ब्लॉक में कार्यरत रहना पड़ रहा है।
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शिक्षिका परमा सोलंकी, जो उच्च माध्यमिक शिक्षक के रूप में ब्लॉक बहरोल, जिला सागर में कार्यरत हैं, ने ऑनलाइन ट्रांसफर आवेदन भी किया था। उन्होंने खरगोन और खंडवा जिले के 12 स्कूलों का विकल्प चयनित किया था, लेकिन उन्हें आज तक स्थानांतरण का लाभ नहीं मिल सका।
“ट्रांसफर की बात मत करो” — अफसरों का जवाब
शिक्षिका का आरोप है कि जब वे अधिकारियों से ट्रांसफर की जानकारी लेने पहुंचती हैं तो जवाब मिलता है — “ट्रांसफर की बात मत करें।”
परमा सोलंकी बताती हैं:
“मेरी एक वर्षीय बेटी है, और पति बड़वाह में पदस्थ हैं। मैं सागर जिले में हूं। परिवार से इतनी दूरी होने के कारण न सिर्फ पारिवारिक जीवन प्रभावित होता है, बल्कि सरकारी कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है।”
कमिश्नर को पत्र, लेकिन नहीं मिली सुनवाई
शिक्षिका ने लोक शिक्षण संस्थान, भोपाल के आयुक्त को पत्र भी लिखा और पूरे नियमानुसार ऑनलाइन आवेदन किया। बावजूद इसके, स्थानांतरण प्रक्रिया में कोई कार्यवाही नहीं हुई।
इस स्थिति में सवाल उठता है —
“अगर स्थानांतरण नीति है, तो फिर एक पत्नी को पति और बालिका से 550 किमी दूर क्यों रखा जा रहा है?”
पॉलिसी है, पर समाधान नहीं?
ट्रांसफर पॉलिसी का उद्देश्य कर्मचारियों को पारिवारिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से संतुलित वातावरण देना होता है, ताकि वे बेहतर कार्य कर सकें। लेकिन ऐसी घटनाएं न केवल सिस्टम की लापरवाही को उजागर करती हैं, बल्कि नीति और क्रियान्वयन के बीच के अंतर को भी सामने लाती हैं।