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✍️ लोकेश कोचले, संपादक, The India Speaks
> “हम, भारत के लोग…”
संविधान की प्रस्तावना इन ही शब्दों से शुरू होती है — एक शपथ, एक घोषणा, एक आत्मार्पण। लेकिन आजकल देश के राजनीतिक मंचों और न्यूज़ डिबेट्स में एक वाक्यांश तेजी से दोहराया जा रहा है: “बाबा साहब का संविधान”।यह कहना जितना भावनात्मक रूप से प्रेरित हो सकता है, उतना ही संवैधानिक रूप से गलत भी।
🔍 क्या “बाबा साहब का संविधान” कहना गलत है?
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डॉ. भीमराव अंबेडकर निस्संदेह संविधान निर्माण की प्रक्रिया में एक केंद्रीय स्तंभ थे। उन्होंने संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में जो कार्य किया, वह अति विशिष्ट और ऐतिहासिक है।
लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि भारत का संविधान व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दस्तावेज है।
संविधान न तो किसी पार्टी का है, न किसी जाति, वर्ग या व्यक्ति का —
संविधान “हम भारत के लोगों” का है।
इतिहास क्या कहता है?
भारत के संविधान को बनाने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे।
इसमें कुल 7 सदस्यीय प्रारूप समिति थी, जिसकी अध्यक्षता बाबा साहब ने की थी।
परंतु इसमें कुल 299 संविधान सभा सदस्य थे, जिनके विमर्श, सुझाव और सुधारों से यह संविधान आकार ले पाया।
👉 यह एक सामूहिक प्रयास था, न कि किसी एक व्यक्ति की रचना।
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तो “बाबा साहब का संविधान” कहना क्या दर्शाता है?
जब कोई नेता यह कहता है कि “हम बाबा साहब का संविधान बचाएंगे”, तो क्या यह मान लिया जाए कि
बाकी लोगों ने इसमें कोई भूमिका नहीं निभाई?
यह संविधान सिर्फ दलितों या वंचितों के लिए है?
यह संविधान पूरे देश का नहीं, किसी विचारधारा विशेष का है?
👉 इस तरह की शब्दावली संविधान की मूल भावना — “एकता, समानता और बंधुता” — को आहत करती है।
📜 संविधान की प्रस्तावना कहती है:
“हम, भारत के लोग,
भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए,
तथा उसके समस्त नागरिकों को:
🔹 न्याय — सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
🔹 स्वतंत्रता — विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की;
🔹 समता — प्रतिष्ठा और अवसर की;
🔹 और उन सब में
🔹 बंधुता — जिससे व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो —
सुनिश्चित करने के लिए,
अक्टूबर 26, 1949 को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
अर्थात् – यह संविधान देश के हर नागरिक द्वारा स्वीकृत और अंगीकार किया गया है।
यह केवल एक कानून की किताब नहीं, बल्कि देश के भविष्य की आधारशिला है।
⚖️ क्या यह अपमान है?
जब शीर्ष नेता, मंत्री या जनप्रतिनिधि बार-बार “बाबा साहब का संविधान” कहते हैं, तो यह
संविधान को व्यक्तिगत संपत्ति बनाने की कोशिश है,
और भारतीय गणराज्य की सांझी विरासत को विभाजित करने का प्रयास भी।
👉 क्या ये शब्द संविधान की आत्मा पर प्रहार नहीं करते?
सम्मान दीजिए, संकुचित मत बनाइए
बाबा साहब का योगदान अतुलनीय है — उन्हें भारत रत्न मिला, संविधान निर्माता के रूप में उनका नाम इतिहास में अमर है।
परंतु सम्मान का अर्थ यह नहीं कि हम संविधान को “बाबा साहब का संविधान” कहकर सीमित कर दें।
संविधान भारत का है, और रहेगा।
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