बड़ूद / खरगोन, मध्यप्रदेश | The India Speaks
सनावद तहसील के केंद्र में स्थित बड़ूद गांव अपने भीतर हजारों वर्षों की आस्था, परंपरा और संस्कृति को संजोए हुए है। इस गांव का नाम सुनते ही जो पहला दृश्य सामने आता है, वह है बड़केश्वर महादेव मंदिर — एक ऐसा स्थल जिसे स्थानीय जनश्रुतियों में पांडवकालीन बताया गया है।
पांडवों से जुड़ी मान्यता, अधूरी सुबह की कथा
स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब पांडव वनवास पर थे तब उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ किया था। लेकिन यह निर्माण कार्य केवल छह माह की रात में ही किया गया, और जैसे ही सूरज निकला, निर्माण अधूरा रह गया। बाद में गांववासियों ने मिलकर इसे पूर्ण किया।
कहते हैं कि जहां यह मंदिर स्थित है, वहां पहले एक बड़ का वृक्ष था। इसी कारण इसका नाम बड़केश्वर महादेव पड़ा और गांव का नाम बड़ूद। यह मंदिर गांव के ठीक मध्य में स्थित है और इसका शिवलिंग लगभग 10 फीट गहराई में भूमि से जुड़ा हुआ है।
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ओंकारेश्वर से समानता और पंचकोशी परिक्रमा का हिस्सा
मंदिर की विशेष बात यह है कि इसका शिवलिंग, लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के शिवलिंग के समान प्रतीत होता है। यही कारण है कि यह मंदिर प्राचीन पंचकोशी परिक्रमा का हिस्सा भी रहा है। हालांकि, परिक्रमा मार्ग में बदलावों के चलते यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में गिरावट आई है।
स्थानीय निवासी पारस बिरला के अनुसार, पहले यह मंदिर परिक्रमा का अहम पड़ाव हुआ करता था, लेकिन अब वह परंपरा धीमी पड़ गई है।
श्रावण मास में पुनः जीवंत होती है परंपरा
मंदिर की लोकप्रियता में भले कमी आई हो, लेकिन श्रावण मास के अंतिम सोमवार को यहां की परंपरा फिर से जीवित हो उठती है। इस दिन शिव ढोला और शिव पालकी यात्रा गांव में बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। आस-पास के गांवों से हजारों श्रद्धालु इस आयोजन में भाग लेते हैं और मंदिर परिसर एक भव्य उत्सव स्थल बन जाता है।
स्थानीय आस्था के अनुसार, यहां जो भी सच्चे मन से प्रार्थना करता है, बड़केश्वर महादेव उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।
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विशेष रिपोर्ट:- आकाश बिरला